मै एक पेड़ हूँ। मेरा जन्म इसी मिट्टी मे हूआ। बरसों पहले मूझे किसीने बोया था। शूरखान में में एक पौधा था, एकदम नाजूक और कोमल । जब-जब बारिश का मौसम आता तब-तब मै तेजी से बढने लगता। मुझे बारिश और सूरज की किरणें बहुत पसंद है।
शुरुवात में जब मैष्ठोटा था तब मुझे बहुत परेशानीया झेलनी पड़ती थी। छोटे होने के कारण सारे जानवर मुझे परेशान करते थे, मूझे खाने की कोशिश करते थे। मैं जैसे तैसे अपनी जान बचा लेता था। कोई मेरी टहनियाँ या पत्ते तोड देता था। अब मै बड़ा हो चुका हूँ। छोटे पौधे से अब मै एक वृक्ष बन गया हूँ। समय के साथ वातावरण मे ढल चुका हूं। अब मुझे सारे मौसम का अंदाजा है। कड़ी से कड़ी धूप हो, या आंधि तूफान आ जाये मै बिलकुल भी नहीं डगमगाता ।
अब मै मनुष्य को अपनी सेवाये प्रदान करने लगा हूँ। मैं उन्हे शीतल छाया देता हूँ, फल-फूल देता हूँ। मेरी छाँव में लेटकर मुसाफिर आराम करते है। लकडी, कागज, मसाले, सब्जीयाँ, औषधियों, ऑक्सिजन और तरह तरह की चीजे में मनुष्य को देता हूँ। मेरे बिना मनुष्य जीवन असंभव है।
मेरे इतने फायदे होने के बावजूद आज मनुष्य मेरे जान के पीछे पडा हुआ है। शहरों मे बडी सडके, बड़ी इमारते बनाने के लिए और अपने फायदो के लिए मुझे काटने लगा है। जिसका दूष्परिणाम भी उसे झेलना पड रहा है। मुझे कभी- कभी डर लगता है, की क्या एक दिन कुल्हाड़ी चलाकर मुझे भी काटा जाएगा? क्या मूझे भी नष्ट किया जाएगायह सवाल मै मनुष्य से पूछना चाहता हूँ।